Archive for January, 2008

इक विश्वास

Thursday, January 31st, 2008

कल देर तक आँधी चली ढेरों बौर गिरे कच्ची अम्बियाँ भी गिरीं पेड़ के नीचे लाशों का ढेर लाशें उठवा ली गईं अँधेरा हटा, पवन थमा धूप की किरणें चमकीं लाशों को टोकरी में डाल ढेरों मसाले लगा ज्यूँ मिस्र की ममी पिरामिड में सहेजी अम्मा ने भी सहेजीं काँच के मर्तबान में मसाले लगा […]

धराशायी आत्मा

Tuesday, January 29th, 2008

फ़ीकी पड़ी शालीनता की शान राजनीति में लहूलुहान हुई नेता की आत्मा कूटनीति में बुलंद हौंसलों से चले थे ढोने देश का भार संकीर्ण संविधान के कानूनों ने दी करारी मार | स्पष्ट बहुमत न ले जब एक दल न सँभाले गद्दी प्रतिशत बढाने को एलायंस की मार सहे वही कैसे चले- फिरे, खाए रोटी […]

खिलने दो खुशबू पहचानो

Tuesday, January 29th, 2008

पँखुड़ियों को अनवरत जुड़ने दो उल्लासित कली बन सिहरने दो पवन मदमस्त हो पहुँचती होगी इक- इक पँखुड़ी का आलिंगन लेगी.. धीमे-धीमे आत्मसात हो इतराएगी समाते ही ख़ुशबू चुरा सुगंधित होगी कली रूप धर फूल का बाग़ महकाएगी जपा-फूल नैवेध देव-चरणों में चढाएगी.. डाली से मातृ-स्नेह का अल्प लय-क्षण विस्मित कौतुक जगाता निर्मल पल स्वतः […]

भगवा गुलाब इंडिया

Saturday, January 26th, 2008

दुनिया के इस चमन में ढेरों गुलाब बाग़बां ने जतन से तराशे हैं गुलाब काँटों के दामन में रह खिलते गुलाब रंग तो सभी हैं,पर महके हैं भगवे गुलाब | पीर-पैग़म्बर, संत थे इंडिया के सवाब दुनिया में जब भी हुए सवाले ख़ुदाब भगवे ने बुलंद हौसलों से दिए जवाब पूरी की अपनी सरज़मीं की […]

युगधर्मी

Saturday, January 26th, 2008

तूफ़ानी इरादे जब चट्टानों से टकराते हैं दुविधाएं लांघकर भी आगे बढ जाते हैं बुलंदियों की चाह कुछ सोचने नहीं देती मज़बूत इरादे स्वयं राहें बनाते हैं…… कुछ कर गुजरने की ललक मन में लिए संकल्प पूरा करने को सदा आतुर इरादे बुलंद किसके कहे बदलते हैं मार्ग-दर्शक बन कसौटी पर खरे उतरते हैं……. अनूठी […]

नव अभिनन्दन

Thursday, January 24th, 2008

गए वर्ष की कग़ार पर खड़े राह तकते गुंजयमान हैं दसों दिशाएं नव अभिनन्दन को मानव-संस्कृति के आयाम अब रूप बदलेंगे सहस्त्रदल कमल राह में बिछेंगे शीशवन्दन को | वर्त्तमान प्रतिबिम्बित है आने वाले कल के चेहरे में आतंकित न हो कलिकाल के भयावह चेहरे से अकथनीय अनुभवों को संजो ले, शब्दों में न ढाल […]

झीने रिश्ते

Monday, January 21st, 2008

कुछ झीने रिश्ते कितने कोमल कितने कच्चे जब फटते कुतरे जाते चाहे टँकें लगें चाहे रफू करें दोबारा वैसे न बन पाते बेढ़ब्बे पैबन्द दिखते अँधियारी सियाह रातें ढँक लेतीं उसे अपनी सियाहियों से दिन के उजाले सह नहीं पाते उनका होना लेकिन— यह माँस में धँसे नाखून कुतरे तो जाते हैं निकाल कर फेंके […]

मंज़र की तलाश

Friday, January 18th, 2008

चाहतों की बरसात में भीगे हम सपनों की सौग़ात सजाए हैं चप्पे-चप्पे में तेरे निशां ढूंढते उम्मीद की इक शमा जलाए हैं.. हवा के झोंके सा तेरा आना मदभरी आँखों का पीना औ चले जाना उस लम्हे पे कुरबान है क़ायनात सारी इसी मंज़र को तलाशते फिरते हैं……. लुटकर भी दामन बचा लिया अपना मदहोशी […]

मीत का संग

Thursday, January 17th, 2008

रंगीली धूप गीत गुनगुना रही है खिलखिलाती फ़िज़ा मुस्कुरा रही है  उनकी आमद से छाई है बहार छिटकी धूप में नहाई है मल्हार.. मेहंदी की महक ने जादू डाला लाली ने लाज पे डाका है डाला नील गगन का मुस्काता चंदा शोखियां बिखेरता माथे पे सजा… मीत के आते खनक उठे कंगन कसक उठे हैं […]

कुछ कहो !

Monday, January 14th, 2008

इस ठहरी हुई ख़ामोशी में बेहद शोर है इन ख़ामोशियों को तोड़ कुछ कहो.. फ़ासले मुँह बाये जो हमारे बीच खड़े हैं इन्हें नज़दीकियों की ज़ुबां दे कुछ कहो.. इक-दूजे की कशिश नाक़ाम मन्ज़र है इस बेनाम सफ़र को मुकाम दे कुछ कहो.. सामने देख कर भी अनदेखा किए हम को रंज़िश ही सही,ज़माने को […]