झीने रिश्ते
कुछ झीने रिश्ते
कितने कोमल
कितने कच्चे
जब फटते
कुतरे जाते
चाहे टँकें लगें
चाहे रफू करें
दोबारा वैसे न बन पाते
बेढ़ब्बे पैबन्द दिखते
अँधियारी सियाह रातें
ढँक लेतीं उसे
अपनी सियाहियों से
दिन के उजाले
सह नहीं पाते
उनका होना
लेकिन—
यह माँस में धँसे नाखून
कुतरे तो जाते हैं
निकाल कर
फेंके नहीं जाते
दीमक से चाटते
खोखला करते
जब तक जहान से
हम
चलता नहीं करते………!
वीणा विज ‘उदित’