Archive for October, 2017

ठूँठ

Sunday, October 29th, 2017

दरिया तीरे हरियाली अपार द्वीप के मध्य अकेला तना था ठूँठ । बाट जोहता था बसंती बयार फागुनी धूप की । सूखे थे सभी हरीतिमा लपेटे वृक्ष सर्द शरद में मृतप्रायः से। फूट पड़े सभी में नव अंकुर बसंत में लहलहाए धीरे-धीरे । अभागा ठूँठ ही रहा सूखा धूप ने सेंका बासंती झोंके लहराए मेघों […]

निःशब्द आहट

Friday, October 27th, 2017

निःशब्द आहट (कविता ) शैवालों से घिरा हृदय ऊहापोह में नैराश्य के भँवर में डोल रहा संवेदनाएं संघर्षरत उभरने को अन्तर् -आंदोलित मथित छटपटाहट -। आते हैं चले जाते हैं भाव-ज्वार हालात नहीं कलम उठा करूँ अभिव्यक्त कब मिला आसमां ज़मीं को मेरी अव्यक्त रहने की बोझिल उकताहट -। बो दिए हैं दरीचों में रिसते […]

अनूठा प्रतिकार 

Wednesday, October 25th, 2017

उर्वरा माटी थी बगिया की रोपी पनीरी फूलों की कोमल , नरम गोशे प्रस्फुटित खिलने को आतुर हर्षित गलबैंय्या हुलारते आ लिपटीं पाँव में कोई जड़ें थीं अजनबी अपनत्व देख हुईं अचम्भित हरीतिमा कोढ़ भरी थी खिली तन को थी बींध रही नुकीली हुलर-हुलर बढ़ रही नागफनी कुरूप देहयष्टि छलनी करती सहमी कोंपलें खिलने से […]