Archive for September, 2015

एक गरिमा भरो गीत में

Tuesday, September 29th, 2015

गीतिका मासूम कुम्हलाई हुई गीत संपुटित विहँस रहा नीरवता चहुँ ओर छाई हुई काव्य उदासित सहम रहा । दर्द भरी अंत:करण की गहराई मानव-तन दर्द से बिलख रहा असंतोष चिंता व्याप्त हर थाई काव्य तन से उजास मर रहा। उठो एक गरिमा भरो गीत में तृप्ति हो धरा से अंकुरित बीज में चहकता-फुदकता ज्यूं जीवित […]

सूरज का टुकड़ा

Tuesday, September 15th, 2015

मेरे बदन की दरो-दीवारों को छूता इक सूरज का टुकड़ा तिरस्कृत कर अन्धकार की काया आगे सरक-सरक जाता ठहरता, कभी बतियाता तो उसकी माया जान पाता बादलों से ऊँची मीनारों पे रहने वाला धरा के कण-कण को टटोले तो जाने उसके आलिंगन की प्यासी स्याह रात पाश में बद्ध गंवाती अपना आपा वक्त की परतों […]

साझी

Saturday, September 5th, 2015

कई बार पिछले जन्म की यादें बनी रह जाती हैं जिसका एक उदाहरण यह कहानी है।