Archive for the ‘Hindi Poetry’ Category
Monday, September 24th, 2007
बीती हुई यादों का मुँह चूम लिया है मैंने वक़्त…. जो सदा से वहीं ठहरा था, उसकी नब्ज़ चल पड़ी है वो पहली मुलाकात वक़्त की रफ्तार में जो पीछे छूट गई थी आज फिर से वही मन्ज़र देख ज़हन में ताजी हो उठी है जो जज़्बात कब्र में दफ्न हो गए थे जिन पर […]
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Monday, September 24th, 2007
मैंने तुम्हे चाहा तुमने मुझे चाहा मैंने तुममें कुछ देखा तुमने मुझमें कुछ देखा हमने क्या चाहा, क्या देखा हमें कब इसकी ख़बर हुई क्या होगा…हमारा ? ये न मैं जानता हूँ न तुम जानते हो शायद! ख़ुदा जानता है… * मुझसे यह उम्मीद न करो कि मैं तुमसे कहूं मुझे तुमसे मोहब्बत है !! […]
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Tuesday, September 18th, 2007
सलेटी बादलों का झुरमुट भरकर लाया यादों का नीर कुछ चेहरे दिखेंगे छुटपुट बदरा बरसेंगे छाती को चीर उमड़ेगा अफ़सानों का सैलाब लाँघेगा साहिल की दरो-दीवार उमड़-घुमड़ करेगा चीत्कार हरे करेगा फिर दिल के घाव रिसते थे, पर चुप रहते थे यादों के बवंडर कचोटेंगे उन्हें फिर आँसू मचलेंगे आँख में घाव और ग़हरे होंगे […]
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Monday, September 17th, 2007
बंद दरवाजे पर टिक टिक सी हुई लगा द्वार खटखटाने हवा थी आई ख़ुशनुमा हवा भीतर आना चाहती है भीतर की मायूसियों को छूना चाहती है उनमें इक नई उमंग भरने को सारे ग़म अपने आंचल में लेने को जन-जन के मानस पटल पर छाने को ख़नकती आवाजें छनकाने को उसे सारे पट खोल आने […]
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Tuesday, September 4th, 2007
शाम ! कब दबे पाँव खिड़की से भीतर चली आई मेरे शानो से लिपटकर मेरी ज़ुल्फों को छूने लगी उसकी नर्म उंगलियों की पोरों ने मेरी सूनी माँग भर दी इक अनदेखी सुहागन सज गई शाम जवान हो चली रात परवान चढ़ने लगी माँग की लाली घुलने लगी ढेरों ख़्वाब बटोरने लगी सारा आलम मस्ती […]
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Sunday, July 29th, 2007
सफर करने को चार जोड़ी कपड़े कुछ कागज़ कुछ किताबें मुश्किलों से बनवाए ढेरों गहनों के ढेर में से केवल चार एक घड़ी बस यही सामान साथ लिया है! घर छोड़ा निर्मोही बन सालों से जो जमा किया सारा सामान छोड़ दिया| आज यहाँ कल कहाँ न मालूम.. जहाँ रात हुई वहीं घर बन गया […]
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Sunday, July 22nd, 2007
भूखी माँ की सूखी छाती अमृत देती है बहा सुन शिशु का रुदन रात-दिन की खिच-खिच में आंसुओं के झरने तले बची है थोड़ी मुस्कान आड़े वक्त मैं कोई ना देगा साथ छुप-छुप के बचाए हैं कुछ रुपये रखे हैं-अंटी में बाँध बहारों के मौसम मीठे स्वप्नों से नहीं सरोकार समय से लड़ते जिए जा […]
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Sunday, July 22nd, 2007
मैं यहाँ ना जाने तुम कहाँ दोनो के कदम इसी ज़मीं पर हैं धुरी पर संग- संग तभी तो धरा की कोख से धीमी- धीमी थाप सॉहार्द का शीतल स्पर्श पा कर कुछ कहने को सिहरन जगाती मुझे दस्तक दे अपने में लपेट आभास तुम्हारा देती है| कदमों की दूरी नगण्य है तभी तो मैं […]
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Tuesday, July 10th, 2007
एक भोली भाली साधारण सी पर सबसे उदासीन इक अजनबी थी वह प्रथम दृष्टि में.. धीरे-धीरे निरंतर उसे तकते रहने से वह नवागुंतक जिज्ञासा जगाती लेकिन कटी-कटी रहकर सबको अपनी ओर आकृष्ट करती अंजान सी सतत आत्मीय लगने लगी थी और अब, उसकी उदासीनता अवगुंठिता सी लगती है…. वह जुड़ी है किसी और से जो […]
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Monday, July 9th, 2007
नन्ही मासूम कली जब फूल बन चली लाखो निगाहे उठी लाखो बाते बन चली लिपटी थी कभी ऑचल मे अब ऑचल लिपटा चली हंसती थी जिसकी हंसी ऑखो मे मुस्करा चली बहारे थी जिसके दम से बहारे खिलाने चली चैनो करार था जिससे सभी की नीदे उड़ा चली महकता था आंगन जिससे हवाए दिशाए महका […]
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