जिजीविषा

भूखी माँ की
सूखी छाती
अमृत देती है बहा
सुन शिशु का रुदन
रात-दिन की
खिच-खिच में
आंसुओं के झरने तले
बची है थोड़ी मुस्कान
आड़े वक्त मैं
कोई ना देगा साथ
छुप-छुप के बचाए हैं
कुछ रुपये
रखे हैं-अंटी में बाँध
बहारों के मौसम
मीठे स्वप्नों
से नहीं सरोकार
समय से लड़ते
जिए जा रहे हैं
मुसीबतों के
हिमालय के नीचे
दबकर भी
जिंदा है जिजीविषा…

वीना विज ‘उदित’

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