कली फूल बन चली

नन्ही मासूम कली
जब फूल बन चली
लाखो निगाहे उठी
लाखो बाते बन चली

लिपटी थी कभी ऑचल मे
अब ऑचल लिपटा चली
हंसती थी जिसकी हंसी
ऑखो मे मुस्करा चली

बहारे थी जिसके दम से
बहारे खिलाने चली
चैनो करार था जिससे
सभी की नीदे उड़ा चली

महकता था आंगन जिससे
हवाए दिशाए महका चली
पिया की गोरी बनकर
प्यार की सेज महकाने चली …..

लो,कली फूल बन चली………

वीना विज ‘उदित’

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