अहसास
मैं यहाँ
ना जाने तुम कहाँ
दोनो के कदम
इसी ज़मीं पर हैं
धुरी पर संग- संग
तभी तो
धरा की कोख से
धीमी- धीमी थाप
सॉहार्द का
शीतल स्पर्श पा कर
कुछ कहने को
सिहरन जगाती
मुझे
दस्तक दे
अपने में लपेट
आभास
तुम्हारा देती है|
कदमों की दूरी
नगण्य है
तभी तो मैं
कहीं भी होकर
तुम्हारे अहसास को
अपने अंग-संग
महसूसता
तुम्हारे
साथ-साथ जीता हूं|
वीना विज ‘उदित’