Archive for July, 2007
Sunday, July 29th, 2007
सफर करने को चार जोड़ी कपड़े कुछ कागज़ कुछ किताबें मुश्किलों से बनवाए ढेरों गहनों के ढेर में से केवल चार एक घड़ी बस यही सामान साथ लिया है! घर छोड़ा निर्मोही बन सालों से जो जमा किया सारा सामान छोड़ दिया| आज यहाँ कल कहाँ न मालूम.. जहाँ रात हुई वहीं घर बन गया […]
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Sunday, July 22nd, 2007
जीवन की साँझ करीब जान कर कमलनाथ भार्गव ने भी एक नीड़ का निर्माण करना चाहा|नौकरी में रहते ही सैक्टर आठ चंदीगढ में जमीन ले ली थी|अब उसी पर दोनों पंछियों ने नीढ बनवाना आरंभ किया|बहुत चाव से सुमित्रा भी पति के साथ लगी रहती व अपने मन के सारे अरमान पूरे कर रही थी| […]
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Sunday, July 22nd, 2007
भूखी माँ की सूखी छाती अमृत देती है बहा सुन शिशु का रुदन रात-दिन की खिच-खिच में आंसुओं के झरने तले बची है थोड़ी मुस्कान आड़े वक्त मैं कोई ना देगा साथ छुप-छुप के बचाए हैं कुछ रुपये रखे हैं-अंटी में बाँध बहारों के मौसम मीठे स्वप्नों से नहीं सरोकार समय से लड़ते जिए जा […]
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Sunday, July 22nd, 2007
मैं यहाँ ना जाने तुम कहाँ दोनो के कदम इसी ज़मीं पर हैं धुरी पर संग- संग तभी तो धरा की कोख से धीमी- धीमी थाप सॉहार्द का शीतल स्पर्श पा कर कुछ कहने को सिहरन जगाती मुझे दस्तक दे अपने में लपेट आभास तुम्हारा देती है| कदमों की दूरी नगण्य है तभी तो मैं […]
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Monday, July 16th, 2007
मुम्बई के सांताक्रुज हवाई-अड़्डे से बाहर निकलते ही वैभव ने चारों ओर नजर दौड़ाई|राजेश तो नहीं दिख रहा था, अलबता सामने भीड़ में हाथ हिलाते हुए ऊष्मा जरुर मुस्कुरा रही थी|राजेश की कमी का ध्यान न करते हुए वैभव की आंखें ऊष्मा को देख्कर खुशी से चमक उठीं|पास पहुंचकर उसने अर्थपूर्ण मुस्कुराहट बिखेरते हुए ऊष्मा […]
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Tuesday, July 10th, 2007
एक भोली भाली साधारण सी पर सबसे उदासीन इक अजनबी थी वह प्रथम दृष्टि में.. धीरे-धीरे निरंतर उसे तकते रहने से वह नवागुंतक जिज्ञासा जगाती लेकिन कटी-कटी रहकर सबको अपनी ओर आकृष्ट करती अंजान सी सतत आत्मीय लगने लगी थी और अब, उसकी उदासीनता अवगुंठिता सी लगती है…. वह जुड़ी है किसी और से जो […]
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Monday, July 9th, 2007
नन्ही मासूम कली जब फूल बन चली लाखो निगाहे उठी लाखो बाते बन चली लिपटी थी कभी ऑचल मे अब ऑचल लिपटा चली हंसती थी जिसकी हंसी ऑखो मे मुस्करा चली बहारे थी जिसके दम से बहारे खिलाने चली चैनो करार था जिससे सभी की नीदे उड़ा चली महकता था आंगन जिससे हवाए दिशाए महका […]
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Sunday, July 8th, 2007
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Sunday, July 8th, 2007
ममता का आवेग उसके भीतर हिलोरे ले रहा था , जिसके फलस्वरूप वह सातवें आसमान पर विचर रही थी। अपने बेटे अभिनव एवम बहू अदा के पास वह पहली बार अमेरिका आ रही थी। बहू के नौंवा महीना चल रहा था। कभी भी डिलीवरी हो सकती थी। हमारे इंडिया में तो लिंग टेस्ट करवाना निषेध […]
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Sunday, July 8th, 2007
हर बात पर बहस -हर चर्चा पर लडाई बस यही होता था , जब भी होता था देव और वन्या छोटी से छोटी बात पर भी बहसने के मुद्दे पर पहुंच ही जाते थे दोनो चाहते थे कि आपस में कोई टोपिक ना ही शुरू हो लेकिन पति-पत्नी ने आखिरकार रहना तो साथ ही था न !
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