Archive for October 28th, 2009

आँचल में बाँध सिसकी

Wednesday, October 28th, 2009

अपने अल्फ़ाज़ों के नश्तर मेरे अन्तस में चुभोकर शराफ़त का मुखौटा ओढ़े तुम बन जाते महान सदा! नख से शिख तक काँप उठती आसमां सिर से ज़मीं पर आ गिरता तन में बहता लहू लावा बन जाता मूक रुदन से दब जाता लावा! झूठी चमक ओढ़ चेहरे पर खिलखिलाती मेरी सूनी बहार रुके-रुके शबनम के […]