Archive for January, 2008

कैसे भूल गया तूं …?

Saturday, January 12th, 2008

खुले आँगन के चारों कोने पीछे दालान के ऊँचे खम्बे छप्पर की गुमटी की ताँक-झाँक बेरी-इमली के खट्टे-मीठे स्वाद संग-संग तल्लैय्या में लगाना छलाँग नमक लगा चाटना इमली की फाँक जीभ चिढ़ाकर अपने पीछे भगाना पिट्ठू के खेल में हरदम हराना जेठ की दुपहरी में नँगे पाँव भागना रंग-बिरंगी चूड़ी के टुकड़े बटोरना आषाण के […]

थ्रोड रोल्स (रोटी फेंकने) का एकमात्र कैफे

Saturday, January 12th, 2008

बेहद अटपटा सा लगता है सुनकर कि चलो वहाँ चलकर खाना खाया जाए जहाँ रोटी फेंककर दी जाती है |क्या तमीज़ है? लोग तो जानवर को भी प्रेम भाव से रोटी खिलाते हैं,और यहाँ फेंकी हुई रोटी खाने का शौक चर्रा रहा है |अमेरिका के मध्य में दक्षिणी तटवर्तीय प्रदेश अलेबामा गल्फ कोस्ट कहलाता है […]

नज़्म -अनकहा रह गया

Saturday, January 12th, 2008

अनकहा रह गया बहुत कुछ था कहने सुनने को अल्फ़ाज़ लबों तक आकर ठहर गए खुश्क लब थरथराकर खुले रह गए अफ़साने सीने के भीतर कसमसाने लगे आँखों ने चाहा कुछ बयां करना इशारों से चाहा समझाना लबों की बेबसी देख पथरा के रह गयीं सब अनकहा रह गया हमेशा की तरह……… वीणा विज ‘उदित’