मंज़र की तलाश
Friday, January 18th, 2008चाहतों की बरसात में भीगे हम सपनों की सौग़ात सजाए हैं चप्पे-चप्पे में तेरे निशां ढूंढते उम्मीद की इक शमा जलाए हैं.. हवा के झोंके सा तेरा आना मदभरी आँखों का पीना औ चले जाना उस लम्हे पे कुरबान है क़ायनात सारी इसी मंज़र को तलाशते फिरते हैं……. लुटकर भी दामन बचा लिया अपना मदहोशी […]