Archive for October 31st, 2007

अरमानों के गुच्छे

Wednesday, October 31st, 2007

अरमानों के मधुर स्वप्न संजोए नव जीवन में मुस्काने बिखेरते | चहुँ ओर सजते हैं सपनों के फूल कोमल कलियाँ शूलों मे खिलते फूल| हर खूँटी पर टँगे अरमानो के गुच्छे इक-इक कर के खुलते ये मोहक गुच्छे | अरमान हों पूरे हर धड़कन की पुकार कुंडियाँ लग जातीं, मिलते न विचार | खुल भी […]

प्रणय- वेला

Wednesday, October 31st, 2007

आज सन्नाटॉं ने ज़ुबां खोली है तन्हाई भी गुनगुनाने लगी है घबराहट से तरबतर तन देखकर बारिश की बूँदें भी शरमा उठी हैं * आज तो पर्वतों की गोद में बादलों ने अठखेलियाँ करने की ठानी है ढलती साँझ ने तिरछे से मुस्कुराकर अपनी अरुणिम रश्मियाँ बिखेरी हैं * बदरा भी लजाकर ग़हरा चले हैं […]