Archive for October 28th, 2007

नूतन स्वरूप

Sunday, October 28th, 2007

ख़्यालों में बसा पराकाष्ठा का स्वरूप वात्सल्य से ओत-प्रोत भ्रूण में नन्हा सा कण ब्रम्हाण्ड के असंख्य रोशनी पुंज से इक किरण प्रस्फुटित हो लेगी जनम घनघोर घटाएं कालिमा छँटेगी बिजली की कौंध नभ में होगी प्रगट क्षितिज में गूंजेगा शंखनाद दैहिक वरण करेगा ऋषि आत्मा का पुनर्जनम मेरी आस्थाएं, मेरी धारणाएं मेरे विचार छू […]