Archive for October 23rd, 2007

स्मृति दंश

Tuesday, October 23rd, 2007

देखते ही देखते जो था, नहीं रहा क्षण-भंगुर! लपटों का अम्बार कालिमा ओढ़े धुँए में गुम बिखरता चला गया जुड़े तिनकों का क़तरा-क़तरा जलने का शोर पार्थिव मिटकर अपार्थिव स्मृति में नवरूप पा गया * ऊपरी मंज़िल टेढ़ा सा जीना ढेरों यादों का बोझा ढोता पल-पल मिटता जाता नवयुगल-रास का दृष्टेता अनकहा यथार्थ लंकादहन दोहराता […]

मुस्काना

Tuesday, October 23rd, 2007

धैर्य के आँचल में करना आराम ओ नीर भरे ऋग के बदरा खोया नींद की आगोश में जब जग करता विश्राम दिल के दर्दों के श्रोत बहाना रिसते छालों को न दिखलाना आंधियारे का लेकर बहाना नीर बहाना, पर मुस्काना  | वीना विज ‘उदित’