Archive for October 22nd, 2007

कैनवस

Monday, October 22nd, 2007

रिक्त कैनवस पर उभरते चेहरे कभी बनते, कभी बिगड़ते ख़्वाबों को ताबीर दे जाते हैं तूलिका से खिंची हर लकीर कह जाती है ढेरों अफ़साने दिल की मर्ज़ी है उसे ही रखे या रुख़ मोड़ दे उसका तलाश है उस रंग की रूह की गहराईयों को रंगकर इक नए रंग की शक्ल इख्तियार करे तूलिका […]