Archive for the ‘Hindi Poetry’ Category

झीने रिश्ते

Monday, January 21st, 2008

कुछ झीने रिश्ते कितने कोमल कितने कच्चे जब फटते कुतरे जाते चाहे टँकें लगें चाहे रफू करें दोबारा वैसे न बन पाते बेढ़ब्बे पैबन्द दिखते अँधियारी सियाह रातें ढँक लेतीं उसे अपनी सियाहियों से दिन के उजाले सह नहीं पाते उनका होना लेकिन— यह माँस में धँसे नाखून कुतरे तो जाते हैं निकाल कर फेंके […]

मंज़र की तलाश

Friday, January 18th, 2008

चाहतों की बरसात में भीगे हम सपनों की सौग़ात सजाए हैं चप्पे-चप्पे में तेरे निशां ढूंढते उम्मीद की इक शमा जलाए हैं.. हवा के झोंके सा तेरा आना मदभरी आँखों का पीना औ चले जाना उस लम्हे पे कुरबान है क़ायनात सारी इसी मंज़र को तलाशते फिरते हैं……. लुटकर भी दामन बचा लिया अपना मदहोशी […]

मीत का संग

Thursday, January 17th, 2008

रंगीली धूप गीत गुनगुना रही है खिलखिलाती फ़िज़ा मुस्कुरा रही है  उनकी आमद से छाई है बहार छिटकी धूप में नहाई है मल्हार.. मेहंदी की महक ने जादू डाला लाली ने लाज पे डाका है डाला नील गगन का मुस्काता चंदा शोखियां बिखेरता माथे पे सजा… मीत के आते खनक उठे कंगन कसक उठे हैं […]

कुछ कहो !

Monday, January 14th, 2008

इस ठहरी हुई ख़ामोशी में बेहद शोर है इन ख़ामोशियों को तोड़ कुछ कहो.. फ़ासले मुँह बाये जो हमारे बीच खड़े हैं इन्हें नज़दीकियों की ज़ुबां दे कुछ कहो.. इक-दूजे की कशिश नाक़ाम मन्ज़र है इस बेनाम सफ़र को मुकाम दे कुछ कहो.. सामने देख कर भी अनदेखा किए हम को रंज़िश ही सही,ज़माने को […]

कैसे भूल गया तूं …?

Saturday, January 12th, 2008

खुले आँगन के चारों कोने पीछे दालान के ऊँचे खम्बे छप्पर की गुमटी की ताँक-झाँक बेरी-इमली के खट्टे-मीठे स्वाद संग-संग तल्लैय्या में लगाना छलाँग नमक लगा चाटना इमली की फाँक जीभ चिढ़ाकर अपने पीछे भगाना पिट्ठू के खेल में हरदम हराना जेठ की दुपहरी में नँगे पाँव भागना रंग-बिरंगी चूड़ी के टुकड़े बटोरना आषाण के […]

लौ का इंतज़ार

Sunday, November 11th, 2007

बढते आते अँधेरे गलबय्यां डाल मेरे अस्तित्व को नकारते मुझ पर छाते चले गए | हमराही कहीं था टटोलने में दिशाभ्रम उसे भी छिटका गया | भयावह कालिमा और यह बाँझ आकाश समाधिस्थ लगता सप्तऋषियों का कारवाँ | अन्तस की लपटों की लौ बुझकर मृतप्रायः हो चीत्कार करने को आतुर खुले होठों में दंतशिलाबन ठिठक […]

टूटे लम्हे

Wednesday, November 7th, 2007

वक्त की शाख से टूट कर लम्हे गुम जाते हैं ! रिश्ते बेनाम होते हैं तो मर जाते हैं ! ठहरे हुए रिश्ते सड़कर बदबूदार हो जाते हैं ! दामन झटकाने से सड़ांध तो जाती नहीं, जिस्म के हर क़तरे के टपकते लहू से बू आती है ! अच्छा हो कि काटकर फेंक दो -उन […]

दीपों के पर्व में तुम खिलखिलाओ

Monday, November 5th, 2007

दीपों के पर्व में तुम खिलखिलाओ मन के अँधेरों में भी दीप जलाओ | * गहन अंधकार में सूझे न दिशाएं ये अमावस कहाँ से घिर आई रोशनी लाओ, नूतन राह सुझाओ मन के अँधेरों में भी दीप जलाओ| * राह भूले नभ में भटकते तारे घनघोर कालिमा में नहीं रोशनीपुंज चंद्रकिरणे सहेज कर लाओ […]

अरमानों के गुच्छे

Wednesday, October 31st, 2007

अरमानों के मधुर स्वप्न संजोए नव जीवन में मुस्काने बिखेरते | चहुँ ओर सजते हैं सपनों के फूल कोमल कलियाँ शूलों मे खिलते फूल| हर खूँटी पर टँगे अरमानो के गुच्छे इक-इक कर के खुलते ये मोहक गुच्छे | अरमान हों पूरे हर धड़कन की पुकार कुंडियाँ लग जातीं, मिलते न विचार | खुल भी […]

प्रणय- वेला

Wednesday, October 31st, 2007

आज सन्नाटॉं ने ज़ुबां खोली है तन्हाई भी गुनगुनाने लगी है घबराहट से तरबतर तन देखकर बारिश की बूँदें भी शरमा उठी हैं * आज तो पर्वतों की गोद में बादलों ने अठखेलियाँ करने की ठानी है ढलती साँझ ने तिरछे से मुस्कुराकर अपनी अरुणिम रश्मियाँ बिखेरी हैं * बदरा भी लजाकर ग़हरा चले हैं […]