इक पन्ना
Tuesday, January 27th, 2009वो भी ग़ज़ब की शाम थी अल्साई सी! ज़ुल्फ़ों के घने साये तेरे शाने पर बिखरे- बिखरे थे! तभी ज़िन्दगी की किताब का इक पन्ना उनमें उलझकर अटक गया वहीं पर! बयाँ होने को थी इक दास्तान अभी इरशाद कहा ही था अफ़साने करवट लेने लगे! कि, लफ़्ज़ दर लफ़्ज़ साँसों की रवानगी में छिपी […]