Archive for January 15th, 2009

अहम् का आवेग

Thursday, January 15th, 2009

असीम आवेग से पानी में मार कर तलवार छोटे-छोटे टुकड़े बनते- बिगड़ते तितर- बितर जाते अपना अस्तित्व नकारते अखण्ड ब्रम्हांड में दारुण व्यथा सुनाते टुकड़ों में न बँट कर पंचभूत प्रकरेण बने रहते * * * अनहोनी प्रक्रियाएँ सत्य से परे भावनाएँ रौंदकर प्रताणना सहतीं यथार्थ के धरातल से परे पानी में चलातीं तलवारें * […]

जाँ बनकर

Thursday, January 15th, 2009

तमाम उम्र गुफ्तगू चली चैन आया न क़रार आया ज़िदंगी तेरी चौख़ट पर मिली सहर बन कर… ख़ैर मक़दम को उनके आसमां ज़मीं हो चला महताबे रोशनी से सरोबार इश्क लिपटा सिहरन बनकर… ता उम्र बेपरवाह-पूछा न किये अदाओं के नश्तर चुभाते रहे क़ातिल मेरी आग़ोश में सिमटा जाने जाँ बन कर… हमनवास, हमराज़, हमसफ़र […]