Archive for July 22nd, 2007

बदलते रंग

Sunday, July 22nd, 2007

जीवन की साँझ करीब जान कर कमलनाथ भार्गव ने भी एक नीड़ का निर्माण करना चाहा|नौकरी में रहते ही सैक्टर आठ चंदीगढ में जमीन ले ली थी|अब उसी पर दोनों पंछियों ने नीढ बनवाना आरंभ किया|बहुत चाव से सुमित्रा भी पति के साथ लगी रहती व अपने मन के सारे अरमान पूरे कर रही थी| […]

जिजीविषा

Sunday, July 22nd, 2007

भूखी माँ की सूखी छाती अमृत देती है बहा सुन शिशु का रुदन रात-दिन की खिच-खिच में आंसुओं के झरने तले बची है थोड़ी मुस्कान आड़े वक्त मैं कोई ना देगा साथ छुप-छुप के बचाए हैं कुछ रुपये रखे हैं-अंटी में बाँध बहारों के मौसम मीठे स्वप्नों से नहीं सरोकार समय से लड़ते जिए जा […]

अहसास

Sunday, July 22nd, 2007

मैं यहाँ ना जाने तुम कहाँ दोनो के कदम इसी ज़मीं पर हैं धुरी पर संग- संग तभी तो धरा की कोख से धीमी- धीमी थाप सॉहार्द का शीतल स्पर्श पा कर कुछ कहने को सिहरन जगाती मुझे दस्तक दे अपने में लपेट आभास तुम्हारा देती है| कदमों की दूरी नगण्य है तभी तो मैं […]