गुनगुनी धूप है

तकते रहे आसमाँ धूप के निशाँ पाने को
कोहरे गिरे ख़ाक कर डाला दिवाने को
शामों को भी सुल्गाया-ग़रमाया हमने
धुंध के अँधेरों ने मसला परवाने को

सुबह के साए बेख़बर थे अब तक
हल्की ज़ुंबिश के बाद सँभल बैठे
क़ाफ़िला बादलों का था दमबेदम
क़तरा-क़तरा रोशनी को पी बैठे!

तपिश पाने को आफ़ताब की राह तकते
तरसते हैं धूप की इक किरण के लिए
थक चुके हैं लिहाफ़ का बोझा ढोते
गुनगुनी धूप है आई शिक़वे मिटाने के लिए ||

नज़्म   By… वीना विज ‘उदित’

* Silver Star  from Abhi-Anu #25   ¼/p>

One Response to “गुनगुनी धूप है”

  1. Manish Says:

    थक चुके हैं लिहाफ़ का बोझा ढोते
    गुनगुनी धूप है आई शिक़वे मिटाने के लिए

    खिड़की के बाहर सचमुच ही गुनगुनी धूप है.. देखें वो हमारे गिले शिकवे दूर कर पाती है या नहीं..

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