Archive for the ‘Random’ Category

स्लम-डाँग

Thursday, March 19th, 2009

आज मैरीलैंड में एक नया स्वरूप देखने को मिला |मेरे भांजे का एक अमेरिकन दोस्त अपनी सौतेली माँ को बोला’, शी इज़ अ कनेडियन बिच ‘|बहुत तरक्की पर है अमेरिका, किन्तु संस्कारों की धरोहर के मामले में कितना ग़रीब! बाप ने दूसरी शादी की, क्योंकि घर में दो बेटे थे, उनकी माँ उन्हें छोड़कर जा […]

शेर

Thursday, December 18th, 2008

इन्तहाई परेशां हूँ ज़िस्म का दामन बचाऊँ कैसे बढ़ता चला आ रहा है नंगी परछाईयों का कारवाँ || वीणा विज ‘उदित’

सुदर्शन फ़ाकिर-एक दर्द भरा शायर

Monday, February 25th, 2008

सुदर्शन फ़ाकिर-एक दर्द भरा शायर अब जहाँ को अलविदा कह गया है |१८ फरवरी ‘०८ की रात के आग़ोश में उन्होंने हमेशा के लिए पनाह ले ली |वो सोच जो ज़िन्दग़ी, इश्क , दर्दो-ग़म को इक अलग नज़रिये से ग़ज़लों के माध्यम से पेश करती थी, वह सोच सदा के लिये सो गई |बेग़म अख़्तर […]

महाराष्ट्र नवनिर्माण

Tuesday, February 12th, 2008

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना-पार्टी का नाम सौ सपने दिखानेवाला, और काम..?इसमें कहीं ताल मेल नहीं बैठता है | ग़ैर-मराठी लोगों के बहिष्कार की बात महाराष्ट्र नव- निर्माण करनेवालों के मुँह से तो कतई शोभा नहीं देती |राष्ट्र के किसी भी हिस्से में लोग निरापद नहीं रह सकते , यह कैसे सम्भव है |राज ठाकरे आखीर किस […]

थ्रोड रोल्स (रोटी फेंकने) का एकमात्र कैफे

Saturday, January 12th, 2008

बेहद अटपटा सा लगता है सुनकर कि चलो वहाँ चलकर खाना खाया जाए जहाँ रोटी फेंककर दी जाती है |क्या तमीज़ है? लोग तो जानवर को भी प्रेम भाव से रोटी खिलाते हैं,और यहाँ फेंकी हुई रोटी खाने का शौक चर्रा रहा है |अमेरिका के मध्य में दक्षिणी तटवर्तीय प्रदेश अलेबामा गल्फ कोस्ट कहलाता है […]

नज़्म -अनकहा रह गया

Saturday, January 12th, 2008

अनकहा रह गया बहुत कुछ था कहने सुनने को अल्फ़ाज़ लबों तक आकर ठहर गए खुश्क लब थरथराकर खुले रह गए अफ़साने सीने के भीतर कसमसाने लगे आँखों ने चाहा कुछ बयां करना इशारों से चाहा समझाना लबों की बेबसी देख पथरा के रह गयीं सब अनकहा रह गया हमेशा की तरह……… वीणा विज ‘उदित’

Halloween–कद्दूओं का त्यौहार

Friday, November 2nd, 2007

31st अक्टूबर आते- आते हर तरफ सिर्फ़ छोटे- बड़े कद्दू ही दिखाई देने लगते हैं, ख़ासकर अमेरिका, इंगलैंड व योरपीयन देशों में |आयरलैड् और स्कँटलैंड से जन्मी प्रथा १९वीं सदी में उनके साथ उत्तर अमेरिका आ गई |२०वीं सदी में पूरे पाश्चात्य जगत के त्यौहारों में रच बस गई कि अब उनकी अपनी धरोहर बन […]

हिंदी दिवस पर एक हल्का- फुल्का आलेख

Sunday, September 16th, 2007

यहां यू. एस में किसी ने मुझसे कहा ‘आप अपनी रचनाऍं रोमन अंग्रेज़ी में भी लिखें, जिससे हम पढ़ सकें|भाषा भी ईज़ी होनी चाहिए, जो समझ आ सके|वही जिसमें हम -आप बोलते हैं|वैसे बैस्ट तो यही रहेगा कि आप कैसेट ही बनवा दें, जिससे हम कार में सुन सकें|एक्चुअली यहां टाईम बहुत कम मिलता है […]