Archive for the ‘Hindi Poetry’ Category

भीतरी बारिश

Wednesday, October 14th, 2009

सूखे तन पे बरसती भीतरी बारिश में भीग-भीग जाती हूँ मैं अन्तर्मन से ! गीली मेरी धोती चिपकी मुझ से क़ोफ़्त है कितनी उघड़ा है बदन ! भीतर चल रहे अंधड़ कँपकँपा जाते हैं दिखती हूँ जीवन जीती भीतर ही भीतर रिसती! चैन ले लूँ मैं भी आँधियाँ तो थमें निचोड़ लूँ गीली धोती ढ़ँक […]

दीदार-ए-यार

Sunday, August 9th, 2009

बहते चश्मों को तरसते मृग शावक सागर में समाने को बेताब दरिया जैसे पपीहे को स्वाति बूँद की प्यास ख़ादिम को दीदार-ए-यार की आस… कुंतल लट से लिपट खुश है दिल बँधकर जंजीर में दीवानगी हुई ऍसी तिशनगी बुझा रही हैं निगाहें उनकी दीदार-ए-यार ही अब ख़ुराक बन गई… उन्हें रब मान दिन-रात की इबादत […]

निर्झर

Friday, July 31st, 2009

नूतन देहयष्टि का लिया प्रथम आलिंगन अनछुए बदन में मचली सिहरन ! तन-बदन के सहस्त्र छोर तक सका न जिन्हें कोई और चप्पा-चप्पा, हर इक पोर तुम्हारे स्पर्श से हुए विभोर ! सूर्य-किरण जहाँ न जा पाए उन अँधियारों में जा समाए हो तुमसे आत्मसात मचले अरमान ! बाँहों में भर पाऊँ तुम जाते निकल […]

कैसे..?

Saturday, January 31st, 2009

>online casino netĿल के परवाज़ की सिसकी सुलग़ते धुएँ में लिपटी ख़ाक होते ख़्यालों को नींद की आग़ोश मिले कैसे..? पलकें पत्थर का बुत हुईं हरक़त हो तो झपकें उनींदे हो चुके ख़्वाब अपने होने का ग़ुमां करें कैसे..? रेशमी सिलवटों पर चला करवटों का सिलसिला ख़्याल पंखों पर उड़ते रहे रात का आलम मुके […]

इक पन्ना

Tuesday, January 27th, 2009

वो भी ग़ज़ब की शाम थी अल्साई सी! ज़ुल्फ़ों के घने साये तेरे शाने पर बिखरे- बिखरे थे! तभी ज़िन्दगी की किताब का इक पन्ना उनमें उलझकर अटक गया वहीं पर! बयाँ होने को थी इक दास्तान अभी इरशाद कहा ही था अफ़साने करवट लेने लगे! कि, लफ़्ज़ दर लफ़्ज़ साँसों की रवानगी में छिपी […]

अहम् का आवेग

Thursday, January 15th, 2009

असीम आवेग से पानी में मार कर तलवार छोटे-छोटे टुकड़े बनते- बिगड़ते तितर- बितर जाते अपना अस्तित्व नकारते अखण्ड ब्रम्हांड में दारुण व्यथा सुनाते टुकड़ों में न बँट कर पंचभूत प्रकरेण बने रहते * * * अनहोनी प्रक्रियाएँ सत्य से परे भावनाएँ रौंदकर प्रताणना सहतीं यथार्थ के धरातल से परे पानी में चलातीं तलवारें * […]

जाँ बनकर

Thursday, January 15th, 2009

तमाम उम्र गुफ्तगू चली चैन आया न क़रार आया ज़िदंगी तेरी चौख़ट पर मिली सहर बन कर… ख़ैर मक़दम को उनके आसमां ज़मीं हो चला महताबे रोशनी से सरोबार इश्क लिपटा सिहरन बनकर… ता उम्र बेपरवाह-पूछा न किये अदाओं के नश्तर चुभाते रहे क़ातिल मेरी आग़ोश में सिमटा जाने जाँ बन कर… हमनवास, हमराज़, हमसफ़र […]

कनारा कर गया

Sunday, November 16th, 2008

हाले दिल बयां करूं भी तो किससे माज़ी अपना ही कनारा कर गया….. रस्मे वफ़ा निभाते रहे उफ़ न किए बेरुख़ी से दामन चाक-चाक कर गया….. जमीं से फ़लक तक सज़दा किए नाकामियों का मंज़र अता कर गया….. अश्कों का समंदर लहू संग बहे हर हाल में जीने का इशारा कर गया…. इश्क में डूबते […]

ग़ज़ल

Sunday, August 10th, 2008

पशेमां ना हो मचलती तमन्नाओं दिल में ही बैठे हैं रुख़्सत हो जानेवाले.. बेहद अकीदत से पुकारा किए उनको तर्क़ कर चल दिए लौट के ना आने वाले.. ना होगा दीदार ना मिलेंगी अब उनकी बाहें लौट के आते नहीं रूठ के जाने वाले.. ग़माफ्जा क्यों हो, कुछ तो तरस खाओ नाचीज़ पर क़रम करो […]

छल का जाल

Friday, May 23rd, 2008

łउउउर नभ के आंचल में डोलती नैय्या सी इक रंगीली पतंग मज़बूत  डोर से बँधी टिकी अपनों के हाथ में, नियंत्रण कर रहा होगा शातिर दिमाग इन सबसे अंजान कितने इत्मीनान से झेलती हवाओं का दबाव| महफूज़ है वह यही तसल्ली लिये जा रही है उसे अन्जानी ऊँचाईयों पर बेखौफ् होकर….. इल्म नहीं कि कटी […]