मेरे दोहे

दोहे

1—मान और अपमान क्या

मानो तो जल की धार

जिधर बहे बह जाने दो

मन स्थिर कर करिए विचार।।

2—करता है जो अपमान, वैसी उसकी सोच

तन पे लागा नहीं, क्यों करना अफसोस ।।

3—हर शब्द को तौलिए फिर लीजे मुंह खोल

बिन कटार दिल चीर दे , नादानों का बोल।।

4—विश्वास को जिसने तोड़ दिया, इज्जत नहीं करी

उस से दूरी राखिए , कितनी भी हो मजबूरी।।

5—गर्दन है तलवारों पर , नारे हैं दीवारों पर

सभी शिखंडी वन खड़े हैं ,लानत है हथियारों पर।।

वीणा विज’उदित’

 

 

 

Leave a Reply