आँखों की भाषा
सर्वविदित सत्य है आँखों की भाषा
जिस्म की भाषा, रूह की भाषा
रंजो ग़म,मस्ती में डूबी दो आँखें
क़तरा-क़तरा जहाँ पनप रही आशा
सोए आलम में तकती निर्मिशेष
अर्श के तारों को पाने की अभिलाषा
इतनी गहरी है, इन आँखों की भाषा !
सोहनी ने इश्क में जान की बाजी लगाई
पीकर आशिक की आँखों का मदप्याला
मद भरे नयनों के सागर में डूब
चिनाब की लहरों का न किया अंदाजा
मन भरमाती है, यह आँखों की भाषा !
उद्वेलित इच्छाएं पातीं इनसे ऊष्मा
शून्यत्व में उत्पन्न करतीं विमर्श
कैसे उबरे साहिल पे अटकी मंजूषा
नैनन में समाई पल-पल जिग्यासा
कौन समझा है, इन आँखों की भाषा !
आँखों से आँखों का मिलना बतियाता
उत्कट भावनाओं का सृजन कर मुस्काता
ऊष्मा के उद्वेग से संकलित उर्जा
विसर्जित हो , करती पूर्ण आकांक्षा
रचती प्रपंच, इन आँखों की भाषा !
गूढ़ रहस्य छिपाए भेद न जतलाए
मौन में भी अन्तर्भाव मुखर हो जाए
मानव मन के नवरस का दर्पण
प्रस्तुत करती भावों की परिभाषा
ऐसी निराली है, इन आँखों की भाषा !
वीणा विज “उदित “