Archive for October 30th, 2018

शब्दिकाएँ (२भाग)

Tuesday, October 30th, 2018

१… धूसर धूमिल धरा हुई धुँधला नील गगन हुआ कैसे टेरूं पी की गलियांं अँधियारे में बूझूं कैसे मन का ताप धुँधलाहट में सूझे न कोई राह ! * २… नि:शब्द सन्नाटे में मौन मुखर हो उठता है होंठ वरते हैं नीरवता आँखे ज़ुबान बन बतियाती हैं।। * ३… इक ख़्याल दिल लगाने को महफिलों […]