पर्वतों के पार
Friday, September 26th, 2014पर्वतों के पार वादी में पहुँची शिथिल काया, भीगी हरियाली के दामन को हौले से थामा| हरी दूब तप्त-स्पर्श पा मुरझा न जाए, अंग-अंग में शीतलता भर सीने में समेटा| पर्वतों के आँचल में बिखरी बस्तियाँ, ज्यूँ झाड़ी में खिले फूलों से लदी टहनियाँ| नीचे तलहटी में फैली टेढी-मेढी गलियाँ, खिलखिलाते बाल-सुलभ बचपन की अठखेलियाँ| […]