अन्ततः
Wednesday, September 24th, 2014हे प्रिये! पीड़ाओं से व्यथित दुधिया चाँदनी मटमैली हो रही है- पिघलती हुई साँझ,रात की स्याही में गुम हो रही है- बाधाओं से घिरी बदरी की टुकड़ी काली हो रही है- आकाश-गंगा में नहाए ,तारों के झुरमुट अभी भी सूखे हैं- अपने ग्रहों की परिक्रमा करते चन्द्र थक सोने चले हैं- साँझ के झुटपुटे में […]