शेर
Thursday, December 18th, 2008इन्तहाई परेशां हूँ ज़िस्म का दामन बचाऊँ कैसे बढ़ता चला आ रहा है नंगी परछाईयों का कारवाँ || वीणा विज ‘उदित’
इन्तहाई परेशां हूँ ज़िस्म का दामन बचाऊँ कैसे बढ़ता चला आ रहा है नंगी परछाईयों का कारवाँ || वीणा विज ‘उदित’
आधी रात को डैडी जी को जो खाँसी लगी, तो बंद होने का नाम ही न ले| ममी जी घुटनों के दर्द से पीडित पास ही लेटी ,बस शोर ही मचाए जा रहीं थीं कि वे उठकर कफ़ सिरप ले लें या फिर मुलट्ठी-मिसरी ही मुँह में डाल लें |लेकिन खाँसी जो एक बार छिडी […]