ग़ज़ल
Sunday, August 10th, 2008पशेमां ना हो मचलती तमन्नाओं दिल में ही बैठे हैं रुख़्सत हो जानेवाले.. बेहद अकीदत से पुकारा किए उनको तर्क़ कर चल दिए लौट के ना आने वाले.. ना होगा दीदार ना मिलेंगी अब उनकी बाहें लौट के आते नहीं रूठ के जाने वाले.. ग़माफ्जा क्यों हो, कुछ तो तरस खाओ नाचीज़ पर क़रम करो […]