ख़ुशनुमा हवा
Monday, September 17th, 2007बंद दरवाजे पर टिक टिक सी हुई लगा द्वार खटखटाने हवा थी आई ख़ुशनुमा हवा भीतर आना चाहती है भीतर की मायूसियों को छूना चाहती है उनमें इक नई उमंग भरने को सारे ग़म अपने आंचल में लेने को जन-जन के मानस पटल पर छाने को ख़नकती आवाजें छनकाने को उसे सारे पट खोल आने […]