Archive for September 4th, 2007

अधूरी शाम

Tuesday, September 4th, 2007

शाम ! कब दबे पाँव खिड़की से भीतर चली आई मेरे शानो से लिपटकर मेरी ज़ुल्फों को छूने लगी उसकी नर्म उंगलियों की पोरों ने मेरी सूनी माँग भर दी इक अनदेखी सुहागन सज गई शाम जवान हो चली रात परवान चढ़ने लगी माँग की लाली घुलने लगी ढेरों ख़्वाब बटोरने लगी सारा आलम मस्ती […]