आत्मीय
Tuesday, July 10th, 2007एक भोली भाली साधारण सी पर सबसे उदासीन इक अजनबी थी वह प्रथम दृष्टि में.. धीरे-धीरे निरंतर उसे तकते रहने से वह नवागुंतक जिज्ञासा जगाती लेकिन कटी-कटी रहकर सबको अपनी ओर आकृष्ट करती अंजान सी सतत आत्मीय लगने लगी थी और अब, उसकी उदासीनता अवगुंठिता सी लगती है…. वह जुड़ी है किसी और से जो […]