Archive for July 9th, 2007

कली फूल बन चली

Monday, July 9th, 2007

नन्ही मासूम कली जब फूल बन चली लाखो निगाहे उठी लाखो बाते बन चली लिपटी थी कभी ऑचल मे अब ऑचल लिपटा चली हंसती थी जिसकी हंसी ऑखो मे मुस्करा चली बहारे थी जिसके दम से बहारे खिलाने चली चैनो करार था जिससे सभी की नीदे उड़ा चली महकता था आंगन जिससे हवाए दिशाए महका […]