भोर की किरण

भोर की किरण( अनाहिता )

असंख्य तारों क झुरमुट
गगन पर
इक तारा अविच्छिन्न हो
उतरा धरा पर
तेजोमय वह अवतरित
आत्मा प्राण -विशेष
स्वाति बूँद सा सीपी भ्रूण
में मोती रूप धर |
राग और झंकार का श्रुति
मधुर नाद
कर्णप्रिय रुदन सुन, मन
हर्षित अल्हाद
स्वर लहरियां तैरतीं
गुंजन म्रिदु वाद
आनंदित ह्रिदय-तल छू
प्रभु -दात|
ओजस्वी आभा बिखेरता
प्रसन्न वदन
यशस्वी हो! आशीषों भरा
मुख-मंडल
चहुँ ओर विभासित,सुखद
उल्लासित पल
शबनम धुली उद्भासित
सूर्य उज्ज्वल |
ताज़ी हवा के झोंके से
रोम-रोम झंकृत
भावी खुशियाँ संवेगों को
करें तरंगित
देदीप्यमान मुखमंडल तक
हुये उत्फुल्लित
भोर की किरण सम्मुख
बाँहे फैलाए सस्मित ||

वीणा विज “उदित”
अनाहिता के जन्म पर

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