अनदेखे ख़्वाब

खुली आँखों के सुनहरे ख़्वाब
यूं ही पलकों पर जा बैठे
उड़ान भरते ही पंख उड़ गए
अनछुए बुत बिन तराशे रह गए

इन अनदेखे ख़्वाबों को
सदा छिपाए रखा जिसने
आँखों की पलकों तले
अब उनींदी सी हैं वे आँखें

हसरतों का दामन समेटे
जा बैठी हैं नींद की आग़ोश में
अनदेखी परछाइयों के साये
ख़्वाबों की शक्ल में डराते

आँखों की सतह में समाए
अर्धचेतना की खिल्ली उड़ाते
मनमानी करते, न सुनते अर्ज़
प्यासी आत्मा को रिझाते

पिछले जीवन से झरते रंग
अस्तित्व तलाशते फिरते
रंग बदलते स्याह कालिमामय
आँखों में तैर, कोरों में फँस

चुपचाप शबनम से ढुलकते
उन्मन पलकों की कोरों से
कभी भिगोते गालों से कान
खामोश बेबसी के झंकृत निशान

हैरान-परेशान हुई चेतना
आग़ोश त्याग नींद की ढूँढे फिरे
कारण ग़माफ्ज़ा ख़्यालों के
करते मग़मूम अनदेखे ख़्वाब !

अर्थ:-
ग़माफ्ज़ा-दु:ख बढ़ाने वाले
मग़मूम-उदास
वीणा विज ‘उदित’

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