लम्हें नहीं रूठा करते
हाथ छुड़ा कर जाने से
साथ नहीं छूटा करते
वक़्त की शाख से लिपटे
लम्हें नहीं रूठा करते ।
जिसने पैरों के निशां
पीछे छोड़े ही नहीं
उस अंजान मुसाफिर का
पता नहीं पूछा करते ।
सरहदों की लकीरें
तो खिंची नहीं कहीं
थक गए हम दरियाओं
का पीछा करते-करते ।
अनचीन्हे जहान से
मुड़कर न देखा कभी
हाड़-मांस में उगे नाखून
समदृश्य हो, जान लो
रिश्ते नहीं टूटा करते ।।
वीणा विज ‘उदित’