साथ तुम्हारा
साथ तुम्हारा मेरे मन को भाता है
ठंडी हवा के पहले झोंके सा
तुम्हारा आना
पहली बारिश की बूँदों सा
सोंधी खुशबू फैलाना
फिर,
उमड़ते-घुमड़ते बादलों में पहली
बिजली बनकर चमकना
मुझ को प्रफुल्लित करता है….!
बगिया के पहले पुष्प की महक सा
मेरे मन को मोहना
साँझ के धुँधलके में पहले स्पर्श सा
तन को कम्पित करना
फिर,
दीए की लौ के पहले प्रकाश सा
मेरे अँधेरों को जगमगाना
मेरे रोम-रोम को पुलकित करता है….!
नए फूल की सुगंध पर पहले भँवरे सा
मँडराना
तपते जिस्म को पिघलाती ठंडक सी
पहली सिहरन देना
फिर,
नभ के प्राँगंण में पहले तारे सा
उजागर होना
मेरे अन्तस को आनन्दित करता है….!
साथ तुम्हारा
सिर्फ़ तुम्हारा मेरे मन को भाता है!!!
वीना विज ‘उदित’