नूतन स्वरूप
ख़्यालों में बसा
पराकाष्ठा का स्वरूप
वात्सल्य से ओत-प्रोत
भ्रूण में नन्हा सा कण
ब्रम्हाण्ड के
असंख्य रोशनी पुंज से
इक किरण
प्रस्फुटित हो लेगी जनम
घनघोर घटाएं
कालिमा छँटेगी
बिजली की कौंध
नभ में होगी प्रगट
क्षितिज में गूंजेगा शंखनाद
दैहिक वरण करेगा
ऋषि आत्मा का
पुनर्जनम
मेरी आस्थाएं,
मेरी धारणाएं
मेरे विचार छू लेंगे
नूतन स्वरूप में गगन
वीना विज ‘उदित’
October 29th, 2007 at 12:51 pm
बहुत बढ़िया. स्वागत है. नियमित लेखन की शुभकामनायें.