युगधर्मी

तूफ़ानी इरादे जब चट्टानों से टकराते हैं
दुविधाएं लांघकर भी आगे बढ जाते हैं
बुलंदियों की चाह कुछ सोचने नहीं देती
मज़बूत इरादे स्वयं राहें बनाते हैं……

कुछ कर गुजरने की ललक मन में लिए
संकल्प पूरा करने को सदा आतुर
इरादे बुलंद किसके कहे बदलते हैं
मार्ग-दर्शक बन कसौटी पर खरे उतरते हैं…….

अनूठी धारणाएं मार्ग-कंटक न बन पातीं
दृढ़ लगन, कर्त्तव्य और निष्ठा मार्ग बनातीं
हिंसा व अन्याय देख आक्रोश से भर जाते हैं
प्रेरणा औरों को देते स्वयं मिट जाते हैं…..

यश की आकांक्षा, स्तुतिगान की नहीं ललक
अधर्म, अनीति से मोर्चा ले करते हैं संघर्ष
युगनिर्माण के सूत्रधार के रूप में दिखते हैं
ये युगधर्मी महाअनुष्ठान में आहुति बन जाते हैं……!!!

वीणा विज ‘उदित’

One Response to “युगधर्मी”

  1. mehek Says:

    bahut sundar

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