विप्लव
मानव नितचिन्तित, प्यार की बाट जोहता
दग्ध हृदय, निर्दय विप्लव आज देखता
आतंकवाद से बचने की करता पुकार
विश्वशान्ति की नित करता गुहार..|
लोलुपता, धर्मान्धता, कट्टरता घनेरी
मर्यादाओं को लांघ चले स्वयं घर के प्रहरी
घर, भवन, अट्टालिकाएं विध्वंस करते
निर्ममता से जन को पीड़ित करते..|
माँ के लाल, उजड़ी माँग के सुहाग
बहना के भ्रात, नव पराग के तात
हाड़माँस आधार, जीवन का पारावार
विप्लव ने हर लिया है उसका सार.. |
रण की भीषण विभीषिकाओं ने
नग्न- नृत्य किया है निर्दयता का
मँडराते हैं काले बादल विपदाओं के
आग उगलता ताण्डव शिव का.. |
त्याग मातृभूमि, संतप्त हृदय करते पलायन
आतंकित, पीड़ित, दुखित हैं सबके मन
रण-विभीषिका जिन-जिन पर है गहराई
क्यूं न शान्ति-दूत बन हम करें अगुवाई…..|||
वीणा विज ‘उदित’