ग़ज़ल……..क्यों हो?
हमदम तुम मेरे
फिर भी अधूरे क्यों हो ?
मेरे होते हुए
तुम तन्हा क्यों हो?
हर लम्हा ढूंढती नज़रें
चिल्मन के पीछे क्यों हो?
रूए-सहर हो मेरे
अज़मत पर ख़फ़ा क्यों हो?
महताबे हुस्न लिए हुए
मुझसे रूठे क्यों हो?
आगोशे -करम पाते हुए
बेचैने तबियत क्यों हो?
क़तरा-क़तरा पिघलते हुए
शर्मो-हया से भरे क्यों हो?
तिशनग़ी मिटाते हो
फिर भी प्यासे क्यों हो..?
वीना विज’ ‘उदित’
चिल्मन-पर्दा, रूए-सहर-सुबह का चेहरा, अज़मत-बढ़ाई, महताबे-हुस्न-चाँद सी खूबसूरती, तिशनग़ी-प्यास |
June 28th, 2008 at 9:22 am
your gazal is nice .I Read 4TIMES NICE S.K FROM U.K