Archive for the ‘Hindi Short Stories’ Category

अनुमोदन

Friday, August 26th, 2011

иконографияज्यूं -ज्यूं इम्तिहान खत्म हो रहे थे,, कैली का मन अजीब ऊहापोह से घिर रहा था |अब आगे क्या है? ग्रेजुएशन तक बचपन व जवानी का एक अहम हिस्सा सीधी लकीर पर चल रहा होता है |कब बचपन ने मुँह मोड़ा ,कब जवानी ने आकर गलबैयाँ डाल लीं, पता ही नहीं चलता है |लेकिन अब […]

ठहराव

Tuesday, May 10th, 2011

Never carry the ideas n thoughts of young age.It changes with the time.Face the reality, and accept it.Then be happy.

माँ

Saturday, April 23rd, 2011

हे क्षीर-स्त्रोत्री ! तुम ही गुरु सखा मेरी अन्तर्प्रज्ञा हो माँ ! जब नन्हे से दो होंठ जुड़े फूटा अस्फुट प्रथम स्वर मां ! बाल-कलोल नटखट बाल-हठ पर लाड़ से लिपटाया तुमने माँ ! चेहरा पढ मन जाना कामधेनु सी इच्छाएं की पूर्ण तुमने माँ ! तन के फटने मन के टूटने पर तुरपाई कर […]

दालमेंकाला

Wednesday, April 13th, 2011

रेशु को आज पल भर की भी फुर्सत नहीं थी|सजे हुए घर को नए सिरे से सजाए जा रही थी |घर पुराना ही सही लेकिन काफ़ी बड़ा था|वैसे भी इसे वो इतने करीने से सजाती-सँवारती थी, कि आने वाले आगुंतक एकबारगी उसकी कलात्मक अभिरुचि और कला-प्रेम की झलक उस सजावट में देखकर उसकी भूरी-भूरी प्रशँसा […]

बर्फानी बाबा की दुर्लभ यात्रा

Saturday, May 1st, 2010

शिव शंकर , भोले-भन्डारी, कैलाशपति, विश्वनाथ ब्रम्हाण्ड के कण-कण में व्याप्त इस जगत को जागृत करने हेतु विभिन्न स्थानों पर भिन्न- भिन्न रूपों में पूजे जाते हैं|उन सब में सर्वोपरि कश्मीर में स्थित अमरनाथ धाम है |उत्त्त्तर भारत में कश्मीर की बर्फीली पहाड़ियों में श्री अमरनाथ बर्फानी शिवलिंग के रूप में प्रगट होते हैं |शिव […]

पुनर्जीवन (second Part)

Thursday, May 21st, 2009

विशा फटी आँखों से रोहण को तक रही थी |किसी तरह अपने को सँभाल वह उसका हाथ झटक कर वहाँ से हट गई |आँखों में अटके सागर को उसने बेरोक बह जाने दिया |भरे-पूरे घर में तो उसे सिसकी लेने पर भी रोक थी ,अभी तक जो बात पर्दे में थी वह खुल सकती थी […]

पुनर्जीवन(First Part)

Thursday, May 21st, 2009

दिन भर फुर्सत में बैठे रहने से विशा का मन नहीं लगता था |नौकर-चाकर ही सब काम कर दिया करते थे |उसने पेंट करके ग्रीटिंग-कार्ड़ बनाने की सोची |विशा का हाथ ड़्राईंग-पेन्टिंग में बहुत माहिर था |उसने बहुत ही प्यारे-प्यारे कार्ड़स बनाए |इससे उसका समय रचनात्मक-कार्यो में बीतने लगा, साथ ही घर में बड़े-बूढ़े,व बच्चे […]

इन्द्रधनुषी चाह

Thursday, May 21st, 2009

विजय की कार जैसे ही कंवल की दुकान के सामने जाकर रुकी |कंवल ग्राहक को फ़टाफट सामान पकड़ाकर बाहर की ओर भागा |उसने विजय को कसकर सीने से लगा लिया |दोनों में बेहद प्यार था |रामनाथ को दुकान देखने को कहकर, दोनो दोस्त दुकान के ऊपर के घर में चले गए | सामने ही ऊँचे […]

चुभन(तीसरा भाग)

Thursday, May 7th, 2009

रजत हर वक्त शगुना से बात करने का यत्न करता, लेकिन वह कन्नी काटकर निकल जाती |आखिरकार वे दोनो जब कमरे में अकेले हुए तो रजत ने उसे अपनी ओर खींचकर पूछा,” शगु! कैसी हो ? पूछोगी नहीं कि मैं कैसा हूँ” शगुना ने झट उसकी बाहों को परे हटाते हुए कहा ,”ठीक हूँ!” चाहती […]

चुभन (दूसरा भाग)

Wednesday, May 6th, 2009

रजत की साधारण नौकरी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थी | वे अपनी बेटी से बेहद प्यार करते थे, तभी उसकी खुशी के लिए उन्हें झुकना पड़ा | दो प्यार करने वालों को मिलाकर अब वे हार्दिक प्रसन्नता व आत्मिक शान्ति का अनुभव कर रहे थे | वे अपनी लाडली बेटी को हर हाल […]