Archive for the ‘Hindi Short Stories’ Category

विश्वास की जीत। (लघु कथा )

Tuesday, July 26th, 2016

Always have faith in a noble person.

मोह के धागे

Tuesday, May 3rd, 2016

the intensity of relations changes with the passage of time.

साझी

Saturday, September 5th, 2015

कई बार पिछले जन्म की यादें बनी रह जाती हैं जिसका एक उदाहरण यह कहानी है।

शुचिता ..संबंधों की

Sunday, June 28th, 2015

http://veenavij.com/%e0%a4%b6%e0%a5%81%e0%a4%9a%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%ac%e0%a4%82%e0%a4%a7%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%80/

शुचिता ..संबंधों की

Thursday, June 25th, 2015

संबंधों को लादना नहीं ,सच्चाई से संभालना पड़ता है।
उन के बीच में पारदर्शिता होनी आवश्यक है।

सदके पे सवाब (लघु-कथा)

Sunday, February 15th, 2015

जनाब बशीर अहमद साहब के परिवार में सबने रोज़ा रखा था | रमज़ान का पाक़ महीना था | हर सच्चा मुसलमान जो धर्म में आस्था रखता है , वो पूरे महीने भर रोज़े रखता है | बशीर भी वैसे ही थे | सुबह उनकी कार कोठी के गेट से जैसे ही बाहर निकलने लगी, वहाँ […]

नन्ही चीखें

Sunday, January 11th, 2015

चारों ओर से तेज रोशनी का प्रकाश और लाल रंग का आधिपत्य ।उफ़ यह तो लाल खून है । दीवारों पर लाल छींटे तो धरा पर लाल -लाल बिखरा कीच । वहीं इस कीच के मध्य नन्हे -नन्हे नंग -धड़ंग ढेरों भ्रूण हैं और नवजात शिशु भी खून से लिपटे हाथ-पाँव मार -मार कर चीत्कार कर […]

तुरपाई एवम् अन्य कहानियाँ…

Sunday, November 30th, 2014

तुरपाई ..की कहानियाँ आज के दौर में संबंधो में आई तब्दीलियों को पकड़ने का प्रयास  करती हैं , और उन मुद्दों का संवेदनात्मक बोध कराने की तरफ अग्रसर हुई हैं। इसमें 20 कहानियाँ हैं। नई संभावनाओं के संकेत देखिए… Turpai and Other Stories (तुरपाई तथा अन्य कहानियाँ) – Hindi Short Stories By Veena Vij तुरपाई […]

वक्त की तपिश

Saturday, November 8th, 2014

चार दिन हो गए थे बारिश रुकने का नाम नही ले रही थी । बिजली भी कभी आती , कभी चली जाती थी । जीवन अस्त व्यस्त हो गया था । दुकाने बंद ,स्कूल बंद, सारा कारोबार ठप हो गया था ।पानी के शोर में सब अवाजे विलीन हो गई थी ।बारिश का ऐसा कहर […]

ग़ज़ल—रक़ीबों की चाह

Saturday, August 23rd, 2014

मग़रिब से आती हवाओं के रुख़ से ज़िंदगी-ए-आम डगमगाने लगी है | हाक़िम ख़ुद क़ज़ा की दवा देते हैं सुन कफ़स में कैद रूहें फडफडाने लगी हैं | आँधियों को गुलिस्ताँ में पनाह देने से सिली-सिली शबनम भी गर्माने लगी है | तंग आ चुके हैं ख़तो-खिताबत से वस्ले यार मेरा सब्र आज़माने लगी है […]