Archive for the ‘Hindi Short Stories’ Category

मोह-भंग

Saturday, March 28th, 2009

धूप की हल्की तपिश ज़िस्म को सेंक देने लगी, तो नीता की आँख लग गई |प्रवेश की शादी के बाद बहू गिन्नी ने घर अच्छी तरह सँभाल लिया था |बड़ी बहू ने तो बेटा ही अमेरिका में रख लिया था, जो वहीं की थी |मझली काफी तेज़ थी |मँझले बेटे आशीष के कुछ दोस्त आस्ट्रेलिया […]

लाल ड्रेस सुनहरे जूते

Saturday, March 28th, 2009

मानव- मन की संवेदनाएं किसी विशेष देश या सरहदों से भिन्न नहीं हो जातीं |भारतीय परिवेश या अमेरिकन वातावरण भावों को बाँटता नहीं |किसी के भी व्यक्तित्व पर सुख- दुख सामान रूप से हावी होते हैं |मेरी यह कहानी एक अमेरिकी नारी की है |……..Lal Dress Sunahre Jute लाल ड्रेस सुनहरे जूते

लौह संकल्प

Saturday, March 28th, 2009

मदनलाल काँलौनी के पार्क में बैठा अपने ही ख़्यालों में खोया हुआ था |उसे ऍसा लग रहा था, मानो उसके पास कुछ भी नहीं है |इतने बड़े संसार में वो नितांत अकेला रह गया है |उसके हम उम्र मित्र थोड़ी गप-शप मार कर अपने-अपने घरों में जा चुके थे |किन्तु आज उसके पैर नौ मन […]

रूप की गाज

Saturday, March 28th, 2009

सन सैंतालिस के दंगों से बनारस भी अछूता नहीं रहा |करीमन बीबी रोती-पीटती अपने खाविंद का ग़म मनाती, उसकी अमानत –उसकी दोनो बेटियों को लेकर आगरा में रहते रिश्तेदारों के पास जाने को निकल पड़ी |जिनकी आस में वो आगरा पहुँची, वो लोग पाकिस्तान के लिए रवाना हो चुके थे |बेचारी मजबूर औरत उन्हीं के […]

बैसाखियाँ

Sunday, December 14th, 2008

आधी रात को डैडी जी को जो खाँसी लगी, तो बंद होने का नाम ही न ले| ममी जी घुटनों के दर्द से पीडित पास ही लेटी ,बस शोर ही मचाए जा रहीं थीं कि वे उठकर कफ़ सिरप ले लें या फिर मुलट्ठी-मिसरी ही मुँह में डाल लें |लेकिन खाँसी जो एक बार छिडी […]

कदमों की थाप

Sunday, August 10th, 2008

जीने पर चढ्ते भारी भरकम जूतों के कदमों की थाप सुनते ही कढ़ाई में चलती मेरे हाथ की कड़छुली वहीं रुक गई |मैं अपने ध्यान में काम में मस्त थी, किन्तु अब आगुन्तक को देखने को आँखें दरवाज़े की ओर लग गईं |जूतों की थाप बता रही थी कि कोई बहुत थका है या सोच […]

गज़ल

Wednesday, July 23rd, 2008

मेरी साँसों में घुली यह खुशबुएं गवाह हैं, उन पलों की जब हम कदम हुए थे वे मेरे…. पशेमां हूं यारा क्यूं इस कदर बदज़न हो गए वो बेरुखी छलकती है करीब आते हैं जब वे मेरे…. ज़िदंगी इक शमा बन गई है इंतज़ारे शमा जलेगी तब तक जब तक हमदम न होंगे वे मेरे…. […]

सम्मोहन

Thursday, March 13th, 2008

सन अस्सी की बात है| अमेरिका से पीटर, उसकी पत्नी कैरोलीना एवम क्रमशः बारह और दस वर्ष की आयु के उनके दो पुत्र जैक व जैरी कश्मीर आए थे | श्री नगर हवाई अडडे पर पहुँचते ही कश्मीर की ठंडी हवाओं ने उनके तन का स्पर्श किया, तो दिल्ली के तपते जून की तपिश का […]

लौ का इंतज़ार

Sunday, November 11th, 2007

बढते आते अँधेरे गलबय्यां डाल मेरे अस्तित्व को नकारते मुझ पर छाते चले गए | हमराही कहीं था टटोलने में दिशाभ्रम उसे भी छिटका गया | भयावह कालिमा और यह बाँझ आकाश समाधिस्थ लगता सप्तऋषियों का कारवाँ | अन्तस की लपटों की लौ बुझकर मृतप्रायः हो चीत्कार करने को आतुर खुले होठों में दंतशिलाबन ठिठक […]

लघु-कथा सुखद अनुभव

Sunday, October 14th, 2007

शाँपिंग करते हुए रेवा के हाथ एक छोटे से कश्मीरी कोट पर जाकर रुक गए |बिना कुछ कहे उसने वो खरीद लिया |उसके सुनहरे ख़्वाबों में एक नन्ही सी तस्वीर उभर आई थी |अपनी सोच पर उसे स्वयं से ही लाज आ रही थी |अभी तो वो रजत के साथ हनीमून पर कश्मीर घूमने आई […]