Archive for the ‘Hindi Short Stories’ Category

चुभन (first -part)

Saturday, May 2nd, 2009

रजत का रवैया उखड़ा- उखड़ा सा था |शगुना अपने- आप में सिमटी, चेहरे पर जबरदस्ती मुस्कान बिखेरे , भीतर से तार-तार होती जा रही थी |रजत से कुछ पूछने का साहस वो जुटा नहीं पा रही थी व घर के बाकि लोगों से तो अभी पहचान ही कहाँ थी? छुप- छुपकर वो रो लेती थी […]

फैसला-दर-फैसला

Friday, May 1st, 2009

 तलाक की चर्चा होने पर ईषिता का मन काँप सा उठा, उसके पति पर चरित्रहीन होने का आरोप शत-प्रतिशत सत्य था |इसी से उसका तलाक लेने का फैसला पक्का था |वकील आया, उससे कुछ- कुछ पूछा—फिर कुछ पढ़कर सुनाया |उसके हस्ताक्षर करवाए और चला गया | निश्चित दिन कुछ रिश्ते-नातेदारों को लेकर ईषिता के पिता […]

तड़प

Saturday, March 28th, 2009

मध्यप्रदेश के दक्षिण-पूर्व में आदिवासी इलाका सरगुजा है |घने जंगलों से आच्छादित पर्वत -श्रेणियाँ अपने भीतर कोयले की खानें समेटे हुए हैं |नीला के पिता के जिग़री दोस्त काशीनाथ वहीं एक खान में अच्छी पदवी पर कार्यरत थे |वह सपरिवार जब क्भी दिल्ली जाते, तो उनका पत्र आ जाता कि शहदोल गाड़ी रुकेगी |आप सब […]

मान्यताएं

Saturday, March 28th, 2009

शमिता और यश अपने छोटे बेटे आर्यन का रिश्ता ढूंढने के लिए बहुत अधीर थे |आजकल इंटरनैट से बेहतर साधन भला और कौन सा है?पति-पत्नि दोनो कम्प्यूटर के सम्मुख बैठकर , जो रिश्ते ठीक लगते उनको चिट्ठियाँ भेजते, कहीं ई-मेल का पता मिल जाता तो उसी क्षण ई-मेल कर देते |बहुत बेसब्री से उत्तर का […]

युगावतार

Saturday, March 28th, 2009

कार के एक्सीलेटर पर पाँव रखते ही मयंक भूल जाता था कि वो ज़मीन पर है | उसके ख्याल आसमानी रंग भरने लगते थे |वो रंगों में खो जाता था |यही सब तो चाहा था उसने |अपने पास एक बढ़िया कार हो, पाँव के नीचे आमेरिका की ज़मीन हो |हाई-वे पर स्पीडिंग मना थी, पर […]

नदी की धार

Saturday, March 28th, 2009

समाज की आंखों में धूल झोंकते हुए अपने अरमानों की तृप्ति करना।

पूर्ण विराम

Saturday, March 28th, 2009

मिनी दुल्हन बनी फूलों की सेज पर बैठी घबराए जा रही थी |इन अमूल्य क्षणों में हर नई- नवेली दुल्हन जो कुछ सोचकर लाज से छुई- मुई हुई जाती है व हर आने वाले पल में उस सपनों के राजकुमार के कदमों की आहट की बाट जोहती है, जो आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में […]

रेखाओं की करवट

Saturday, March 28th, 2009

दिसम्बर की छुट्टियों में कनु होस्टल से घर आई थी |जी तो चाहता था कि लम्बी तानकर सोई रहे |होस्टल की घंटी से बँधी दिनचर्या से कुछ दिनों के लिए छुटकारा तो मिला |पर कहाँ, मम्मी है कि अपनी अपेक्षाएं संजोए बैठी थीं |कनु आएगी तो यह करूंगी, वह करूंगी |कनु के साथ फलां- फलां […]

समाधान

Saturday, March 28th, 2009

पल्लवी ने काँलेज से आकर मेज पर किताबें पटकीं तो उसकी नज़र घर की साफ- सुथरी सज्जा पर ठहर गई |उसे लगा अवश्य ही कोई विशेष बात है, जो घर को सजाया गया है |माँ को पुकारती वो रसोई की ओर चली गई |रसोई से आती महक से उसका शक़ यकीन में बदलने लगा |माँ […]

रीती गठरी

Saturday, March 28th, 2009

वैधव्य के श्वेत परिधान में लिपटी कविता आज बरसों बाद एक यातना से उबरकर उस शान्ति का अनुभव कर रही थी, जिसे पाने के लिए वो दिन- रात छटपटाती रही थी |बीस—-वर्षों की लम्बी यात्रा!! जिसमें चलते- गिरते , उठते- बैठते उसके क़दम इस क़दर भारी हो चले थे कि उसके पार्थिव शरीर का बोझ […]