Archive for the ‘Hindi Poetry’ Category

माँ

Saturday, April 23rd, 2011

हे क्षीर-स्त्रोत्री ! तुम ही गुरु सखा मेरी अन्तर्प्रज्ञा हो माँ ! जब नन्हे से दो होंठ जुड़े फूटा अस्फुट प्रथम स्वर मां ! बाल-कलोल नटखट बाल-हठ पर लाड़ से लिपटाया तुमने माँ ! चेहरा पढ मन जाना कामधेनु सी इच्छाएं की पूर्ण तुमने माँ ! तन के फटने मन के टूटने पर तुरपाई कर […]

इक आलिंगन !

Tuesday, January 11th, 2011

चाँद की चाँदनी से छिपकर श्यामल मेघों की ओट में आओ, मिलन की चाह में चुपके से , ले लें इक आलिंगन ! सूर्यकिरणें आती छनछन गरमातीं पत्तोँ के तन आओ, सुबह की ओस बनकर पत्तों पर लुढ्क,ले लें इक आलिंगन ! साँय-साँय हवा के शोर से लरजतीं पेड़ों की डालियाँ आओ, पत्ते बन डाली […]

स्वागतम युवराज

Tuesday, November 16th, 2010

झरे फूल हर-सिंगार के बगिया ने ओढ़ ली चुनरिया आवतरित हुआ युवराज महक उठा घर-प्रांगण | नव-शिशु रुदन गूँजा भ्रमित भँवरा गुँजन भूला हर्षित हो चिड़ियाँ लगीं चहकने जुगनु जगमग लगे चमकने | पुरखों की परम्परा निभाना भाई बहनों का देना साथ सर्वदा जग में महके यूँ नाम तुम्हारा ज्यूँ ईशान में चमके ध्रुवतारा| आशीष […]

पत्थर खुदा बन गया !

Saturday, November 13th, 2010

उच्च हिम-शिखरों से हो अवतरित पर्वतांगों से खिलवाड़ कर कंकड- पत्थर को लेकर संग नदी इठलाती-बलखाती चली सागर से करने मिलन ! आपनों से टूटने धारा संग बहने का विद्रोह पत्थर का ,जल के दुलार ने भुलाया विछोह | बाल-सुलभ हठ को स्नेह-स्पर्श से बहा चली वो ! लुढ़क-लुढ़क कर वक्त की धार से जूझकर […]

परदेस मे दीवाली

Tuesday, November 2nd, 2010

घनघोर तिमिर अमावस का हुआ नेह दीप से ज्योतिर्मय स्वर्ण उल्लू वाहन लक्ष्मी का चाँदी के मूस पर गणपति सजे | परदेस में बसे इंडियंस के घर दीपावली का दिखावा जमकर मुस्काते,है अन्तर्मन व्याकुल स्वदेस की दिवाली को मन आकुल| चाँदी के थाल लडडुओं के सजे खानेवाला, लेनेवाला कोई नहीं बहुत याद आते मंदिर के […]

रुसवाई

Wednesday, September 22nd, 2010

हाले दिल बयां करूं भी तो किससे माज़ी अपना ही कनारा कर गया.. रस्मे- वफ़ा निभाते रहे उफ़ न किए बेरुखी से दामन चाक-चाक कर गया.. ज़मीं से फ़लक तक सजदा किए नाकामियों का मंज़र अता कर गया.. अश्कों का समंदर लहू संग बहे ऐसे ही जीने का इशारा कर गया.. इश्क में ड़ूबते तो […]

हाज़िर है इक ‘शेर’

Wednesday, September 22nd, 2010

दर्द औ ग़म की दोस्ती में ज़ख्मों की आदत जिग़र को हो गई…!

बहक गया हूँ मैं..

Tuesday, September 21st, 2010

जिन्हें अपनाने का दम्भ भरते थे उनसे डरकर लौट आया हूँ मैं.. मीलों दूर हैं अब कल के निशां उन्हें पीछ छोड़ आया हूँ मैं.. वफ़ा पर बेवफ़ाई की तोहमत लगे उससे दामन झटक आया हूँ मैं.. ‘कल’ जो इक अल्फ़ाज़ बन चुका है ता उम्र उससे लड़ आया हूँ मै.. जीने को आज है […]

आँचल में बाँध सिसकी

Wednesday, October 28th, 2009

अपने अल्फ़ाज़ों के नश्तर मेरे अन्तस में चुभोकर शराफ़त का मुखौटा ओढ़े तुम बन जाते महान सदा! नख से शिख तक काँप उठती आसमां सिर से ज़मीं पर आ गिरता तन में बहता लहू लावा बन जाता मूक रुदन से दब जाता लावा! झूठी चमक ओढ़ चेहरे पर खिलखिलाती मेरी सूनी बहार रुके-रुके शबनम के […]

हाहाकार

Tuesday, October 27th, 2009

झोपड़िया की टूटी छत से टप-टप टपकता जल जीवन भिगोता, कँपकँपाता इमारतें बनानेवाला तन! फटे चिथड़ों में लिपटते रेशमी परिधान बनानेवाले पिचके पेट, अन्न को तरसते जग का पेट भरने वाले ! कूड़े के ढेर पर पलते कूड़ों का ढेर उठाने वाले घुटने पेट में गाड़,ठिठुरते नरम कंबल ,रजाई बनानेवाले! अन्याय का हाहाकार– अत्याचार, असंतोष […]