पैमाने
Tuesday, August 14th, 2018वक़्त के अजब हैं पैमाने लम्हों की अलग हैं गुज़ारिशें ! ज़िंदगी ने वक़्त ही कहाँ दिया बामुसलसल बढ़ रहीं हैं ख़्वाहिशें ! रेतीले ढूह की मानिंद सपनों के बिखर जाने की आवाज़ नहीं भीतर तक हिला देने वाली सर्द़ लकीर जिस्म के आर-पार चुभोती है तश्वीशें ! कैसे रिश्तों को समेटें अपने ही अक्स […]