बदलते रंग
जीवन की साँझ करीब जान कर कमलनाथ भार्गव ने भी एक नीड़ का निर्माण करना चाहा|नौकरी में रहते ही सैक्टर आठ चंदीगढ में जमीन ले ली थी|अब उसी पर दोनों पंछियों ने नीढ बनवाना आरंभ किया|बहुत चाव से सुमित्रा भी पति के साथ लगी रहती व अपने मन के सारे अरमान पूरे कर रही थी| उसके दोनो बेटे ब्याह के पश्चात नॉकरी के सिलसिले में विदेश चले गए थे|दोनो बहुएं भी काम कर रहीं थीं|बहुत खुशहाली छाई थी, पूरे परिवार में| Badalte-Rang-बदलते रंग
July 25th, 2007 at 8:48 am
Kya yahi hai jeewan ki sacchi?
Hamare diye sanskar kanha kho jate hain?……..kya is soch ko badla nahi ja sakta?
hamare bacche bhi videsh main rahtein hain,main bahut darti hoon ,kanhi mere saath bhi
eisa na ho, kya karu ?
August 7th, 2007 at 7:08 am
I HAVE NO COMMENT BECAUSE I LIKE THAT THINKS I CANT CRITISE THAT………..
September 3rd, 2007 at 11:52 am
रश्मि जी,
सन्सकारों की बातें अतीत की बन जातीहैं|उन पर वर्तमान हावी हो जाता है|यदि आप अभी से तैय्यार रहें, तो सदमा नहीं लगेगा|यह तो होना ही है , आगे चलकर|…सच्चाई से मुँह ना मोड़ें|शुभ -कामनाएँ लिये..वीना विज
September 3rd, 2007 at 11:57 am
Hi, Pankaj,
Its Good , u take the life that way.Best wishes..Veena Vij
September 15th, 2007 at 11:13 pm
too gud poemm so ….cant comment!!!!!!!!