प्रिय कैसे रिझाऊं..?
प्रिय कैसे रिझाऊं..?
उर की ज्वाला दहक उठी जब
दग्ध हृदय को कैसे समझाऊं ?
बैठ ओसारे ताकूँ दिया जलाए
नैनों की गागर से सागर बहाऊँ ।
सर पर ओढ़े कोहरे की चादर
साँझ को कैसे चाँद दिखाऊं .?
सघन रैन की श्यामल बाँहें
पुलकित यामिनी से बंधती जाऊं ।
प्रेम-विश्वास की टहनी सूख रही
प्रथम फूल आस्था का कैसे उगाउँ. ?
सूखने की कगार पे है स्रोतस्विनी
कहाँ से चैतन्य की दुर्वर-धारा लाऊँ.?
आवेग -संवेग मन करते विचलित
लुप्त क्रियाशक्ति को कैसे जगाऊँ .?
विद्युत् शिखा प्रगट हो नभ् में, ऐसी
रस-निर्भर मेघमाला कहाँ से लाऊँ.?
मूक-रुदन से अवसन्न हुआ चित्त
सूखी पुतलियों को कैसे परचाउं.?
प्राण-पखेरु नित आस लगाएं
मन -बावरा प्रिय कैसे रिझाऊं ..??
वीणा विज उदित
12 जनवरी 2015
यू. एस. ए